मंगलवार, 31 जनवरी 2017

रस्सी में जान

पांच रुपये में १० मिनट
पांच रुपये में १० मिनट 
चीखते वह चला आता था। 
मोहोल्ले के बहादुरजी से बचते हुए, 
हर इतवार लाल तम्बू लगाता था। 

क्या बच्चे क्या बूढ़े क्या औरतें क्या नौजवान,
नियुक्त अस्तित्व छोड़ सब बनजाते कदरदान।

कभी जोधा अकबर की प्रेम कहानी,
तोह कभी श्रवण कुमार की आदर्शता,
कभी कृष्णलीला और गोपियाँ सुहानी,
तोह कभी भगवान् श्रीराम की वनवास कथा

ज़बान से नहीं रस्सियों से कविताएं बतियाते थे वोह ,
चेहरे पे झुर्रियां थी पर उँगलियों से जादू चलाते थे वोह।

खुदके भविष्य के कोई ठिकाने नहीं,
पर दर्शकों को खुली आँखों से सपने दिखाए,

इसकी थाली में रोटी भले ना हो।
पर मुख पे शिकस्त का एक कतरा नहीं। 

किताबों से ज़तदा स्पष्ट भाषा अब कठपुतलियां लगती थी मुझे,
बेजान लकड़ी के पुतलों को दिलोजान बना बैठा था मैं।

कुछ सीटियों सा आवाज़ आता था उस पडदे के पीछे से,
नादानों के लिए शोर, पर मेरे लिए तोह कबीर वाणी सा स्पष्ट।

बच्चों के रुदन को एक ठुमके में हसरतों में तब्दील करता था,
कागज़ के शेरों को नजाने दहाड़ना भुला कर सीटियां कैसे बजवाता था

में तोह जादूगर कहता था उसे,
नजाने लोग उसे क्यों कठपुतली वाला बुलाया करते थे। 

मर्द का दर्द

नामर्द, हिजड़ा, नपुंसक, ये है मेरे घर की पहचान,
बस अब तोह करवटें बदलता हूँ, हालात मेरे बस में कहाँ।

आइए सुनाते हैं तुम्हे मेरे उपनामों के पीछे की दास्ताँ

कुछ हफ्ते पहले की बात है,
हमारी चौथी सालगिरह की रात है,

अर्धांगिनी नए कंचन के कंगन में रूपसुंदरी लग रही थी,
और अपनी छोटी बहन नेहा के तलाख को लिए चिंतित भी। 

मेरी ही मत मारी गयी!
जो नेहा को मैंने हमारे साथ पार्टी में आने को पूछा,
नेहा चल पड़ी,
अर्धांगिनी जल पड़ी। 

साथ खाया थोड़ा ज़्यादा पिया कुछ हँसे कुछ रोये,
कन्धे पर सिरहाने रख गाड़ी की पिछली सीट पर सोये,

नेहा को घर छोड़ा,
और
अर्द्धानिगिनी ने आपा खोया,

"तुम उसे ऐसी नज़र से देख भी कैसे  सकते हो,
मेरी बेहेन है वोह,
मैंने देखा तुम उसे कैसे हँसाने की कोशिश कर रहे थे।"

मुझे एहसास भी नहीं पड़ा कब नशे में अर्धांगिनी ने मुझे कसके दो लप्पड़ लगा दिए,
कह पड़ी "चार साल में एक संतान नहीं और चले मेरी बहन से इश्क़ लड़ाने।"

यह पहली बार नहीं की उसका अधिकारात्‍मक स्वभाव आक्रामक बना हो,
और यह आखरी बार नहीं की पैर की जूती सा मेरा स्वाभिमान फिर कुचला हो। 

सोमवार, 30 जनवरी 2017

लिफ्ट

भाग कर लिफ्ट पकड़ने वाले लोगों,
मोटापा बढ़ाने की इतनी भी क्या जल्दी है। 

बबलू

भूरी चाय छोड़ बबलू हरी चाय तोह शहर आकर उबालने लगा
गाँव की टपरी पर आज भी यही अफवाह है की बबलू शाला जाने लगा 

बुधवार, 25 जनवरी 2017

व्यंजन

अगर बिना चाशनी की बातें आपको कड़वी लगने लगी है , तोह मुबारक हो आप ज़िन्दगी का ज़ायका भूल चुके हैं !

सोमवार, 23 जनवरी 2017

हैवान

खुशकिस्मत है वो लोग, जो अबभी जानवरों से डरते है, इंसानों से नहीं! 

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

तृप्ति

दुम हिलाती दो भूरी आँखों ने मेरा नाष्ता चुरा लिया,
आज पेट की भले ना पर ईमान की भूख ज़रूर मिटी है!